गरीबों की दुनिया

गरीबों की दुनिया 
एक ऐसे परिवार की बात है जो बहुत गरीब था उसके पास खाने का कुछ नहीं था उस परिवार के बच्चे बहुत भूखे थे वह 2 दिन से अपना पेट नहीं भरे थे फिर भी उनके मन में खुशी थी और उन्हें अपनी मिट्टी का मकान और छप्पर भी स्वर्ग जैसा लग रहा था उनके घर के 10 से 12 कदम की दूर पर एक अमीर परिवार भी रहता था। उस अमीर परिवार के घर में उनकी बेटी की शादी थी उनका घर दुल्हन की तरह सजा था सुबह से बढ़िया- बढ़िया खानों की खुशबू आ रही थी 2 दिन से भूखे बच्चे उस खुशबू से अपने आप को तसल्ली दिला रहे थे। पर बच्चों की मां को बड़े लोगों की चाल- चलन और उनके गरीब ह्रदय, छत हीन और उनका  बर्ताव समझ में नहीं आता था फटे कपड़े पहनने वाले बच्चों के प्रति कितने दया सील होते हैं उससे अच्छी तरह वाकिफ थी,तभी अपने बच्चों को अच्छी तरह समझा कर काम पर  गई थी रोज की इस दिन भी उसको कोई काम नहीं दिया था रोज की तरह घर लौटी तो बच्चे रोते हुए पूछ पड़े मां कुछ खाने को लाई- मां की आंख में आंसू आ गए और बोली बेटा आज तो नहीं लाए परंतु मेरे पास एक रोटी है उसी में सभी खालो और उस मां को अमीर घर के फेके हुए खाने की आशाएं थी जब भी वहां  कोई उत्सव होता था तो उनके घर के पीछे की दीवार पर फेंक देते तभी बच्चे और उनकी मां अपना सौभाग्य मानकर खुशी-खुशी खा लेते थे पर अब की बार बहुत रात हो गई थी बारात भी देर से आई थी बच्चे भूख के मारे सिसकियां  ले-ले कर रात भर रोते- रोते सो गए पर अभी भी उनकी मां खाने की राह देख रही थी यह सोच कर कि बच्चे 2 दिन से कुछ नहीं खाए हैं कुछ खाने को मिल जाए तो उसे उठाकर बच्चों को खिला दे बहुत देर बाद अमीर घर का वॉचमैन कैटरिंग वालों को जगह दिखाते हुए बाहर लाया और कहा- भाई यही फेंक दो कल कुत्ते या कूड़ा साफ करने वाले साफ कर देंगे बच्चों की मां अपने बेहिसाब खुशी को संभालते हुए घर से कुछ बर्तन लेकर उसी और दौड़ने लगी और देखा दूसरी ओर से कुछ कुत्ते भोंकते हुए दौड़े आ रहे थे देखते- देखते मां से पहले कुत्ते वहां पहुंच गए और फेंका  हुआ खाना खा डाले। कहते हैं (दुनिया में सारे नाटक यह भूख पेट के लिए ही होते हैं)दौड़ते- दौड़ते मां वॉचमैन के पास जाती है और रो-रोकर वॉचमैन से थोड़ा खाना मांगती परंतु वॉचमैन घिन आने जैसा मुँह बनाता और बोलता - जाओ वह देखो पड़ा है उठा कर खा लो जाकर यह कहकर उसको भगा दिया इसी बात को सुनकर मां रोते - रोते हुए निराश होकर अपने घर वापस चली आए और अपने बच्चों के साथ सो गई।
गरीबों का बचपन 

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