लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर देशभर में सियासी घमासान जारी है. ऐसे में ये जानना अहम है कि लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत को लेकर अदालतों का क्या रुख रहा है. देश के विभिन्न हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में ये मसला उठता रहा है. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट 2 महत्वपूर्ण आदेश हैं. 18 जुलाई 2005 और 28 अक्टूबर 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि शांति से, बिना ध्वनि प्रदूषण का जीवन आर्टिकल 21 के तहत मिले 'जीने के अधिकार' का हिस्सा है. अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर बाकी लोगों को अपनी बात सुनने के लिए बाध्य किया
लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर देशभर में सियासी घमासान जारी है. ऐसे में ये जानना अहम है कि लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत को लेकर अदालतों का क्या रुख रहा है. देश के विभिन्न हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में ये मसला उठता रहा है. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट 2 महत्वपूर्ण आदेश हैं. 18 जुलाई 2005 और 28 अक्टूबर 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि शांति से, बिना ध्वनि प्रदूषण का जीवन आर्टिकल 21 के तहत मिले 'जीने के अधिकार' का हिस्सा है. अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर बाकी लोगों को अपनी बात सुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
जुलाई 2005 का SC का फैसला
18 जुलाई 2005 को दिए गए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर/म्यूजिक सिस्टम/पटाखों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. जस्टिस आर सी लोहाटी और जस्टिस अशोक भान ने बेंच ने अपने फैसले में कहा कि ध्वनि प्रदूषण से आजादी आर्टिकल 21 के तहत मिले जीवन के अधिकार का ही एक हिस्सा है. यह शोर, शांति से रहने के लोगों के अधिकारों में दखल देता है.
18 जुलाई 2005 को दिए गए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर/म्यूजिक सिस्टम/पटाखों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. जस्टिस आर सी लोहाटी और जस्टिस अशोक भान ने बेंच ने अपने फैसले में कहा कि ध्वनि प्रदूषण से आजादी आर्टिकल 21 के तहत मिले जीवन के अधिकार का ही एक हिस्सा है. यह शोर, शांति से रहने के लोगों के अधिकारों में दखल देता है.