सोशल मीडिया पर हिंदू विरोधी अभद्र भाषा का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. यहां तक कि श्वेत वर्चस्ववादी मीम्स और कोडित भाषा का भी इस्तेमाल किया गया है, जिसमें हिंसा के फैलने की संभावना है. अमेरिका के रटगर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ये जानकारी दी. इसके लिए यूनिवर्सिटी में नेटवर्क कॉन्टैगियन लैब की टीम ने एक रिसर्च की. इस रिसर्च में सोशल मीडिया को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे हुए.
यूनिवर्सिटी में नेटवर्क कॉन्टैगियन लैब की टीम ने 'एंटी-हिंदू डिसइनफॉर्मेशन: ए केस स्टडी ऑफ हिंदूफोबिया ऑन सोशल मीडिया' नाम से रिसर्च तैयार की. इसमें कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हिंदू समुदाय को लेकर एनालिसिस किया गया. इसके लिए टीम ने सोशल मीडिया पर आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया. रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे श्वेत वर्चस्ववादी हिंदुओं के बारे में मेमों को टेलीग्राम और अन्य जगहों पर चरमपंथी इस्लामी वेब नेटवर्क के भीतर शेयर किया जा रहा है. ये पाया गया कि जुलाई में, हिंदूफोबिक कोड वर्डस और मीम्स पर सिग्नल रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया, जो वास्तविक विश्व हिंसा को भड़का सकता है, विशेष रूप से भारत में बढ़ते धार्मिक तनाव के बीच में ये काफी खतरनाक है. रटगर्स यूनिवर्सिटी-न्यू ब्रंसविक में मिलर सेंटर और ईगलटन इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स दोनों के निदेशक जॉन जे फार्मर जूनियर ने कहा, दुर्भाग्य से, हिंदू आबादी द्वारा सामना की जाने वाली कट्टरता और हिंसा में कुछ भी नया नहीं है..
हिंदू विरोधी रूढ़िवादिता का किया जा रहा प्रसार
शोधकर्ताओं के अनुसार, ईरानी ट्रोल ने हिंदुओं पर भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ नरसंहार करने का आरोप लगाने के लिए एक प्रभाव अभियान के हिस्से के रूप में विभाजन को बढ़ावा देने के लिए हिंदू विरोधी रूढ़िवादिता का प्रसार किया. छात्र विश्लेषक प्रसिद्ध सुधाकर ने न्यू जर्सी गवर्नर्स एसटीईएम स्कॉलर्स प्रोग्राम के हाई स्कूल के छात्रों के साथ काम किया और हिंदू विरोधी दुष्प्रचार के आंकड़ों और गेज आयामों को इकट्ठा करने और उनका एनालिसिस करने के लिए काम किया.
हिंसा को भड़काने की साजिश
मई में रटगर्स से कंप्यूटर साइंस और इकोनॉमिक्स में डबल मेजर और क्रिटिकल इंटेलिजेंस स्टडीज के साथ ग्रेजुएशन करने वाले सुधाकर ने कहा, 'मैं इस कम प्रतिनिधित्व वाले विषय के बारे में जागरूकता लाने के अवसर की सराहना करता हूं.' विश्लेषक उन रिपोर्ट्स की एक सीरीज को फॉलो करते हैं जो एनसीआरआई और रटगर्स सेंटर्स ने 2020 से जारी किए हैं जो व्यापक, वास्तविक दुनिया की हिंसा को भड़काने के लिए साजिश के सिद्धांतों और सोशल मीडिया नेटवर्क के इस्तेमाल की जांच करते हैं.