इंसानियत हमेशा से आज़ाद थी नफ़रत और मज़हब कि लड़ाई में, इसका सजीव चित्रण है फ़िल्म जस्सू

लखनऊ - फिल्मों में दिखाई जाने वाली रील दुनिया का प्रभाव बड़े पर्दे पर कुछ ऐसा होता है कि वह देखने में असली लगे। किसी भी फिल्म को स्पेशल बनाने में सिर्फ उसमें दिखने वाले एक्टर्स की मेहनत नहीं होती। बल्कि पर्दे के पीछे कार्य करने वाले लोगों का सबसे अहम रोल होता है। प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, वीडियोग्राफर इत्यादि। इन सभी लोगो की मेहनत से एक फिल्म का निर्माण होता है। एक ऐसी फिल्म जो मनोरंजन के साथ साथ समाज को एक अच्छा संदेश देने वाली जिसने हर वो पहलू को दिखाया जो समाज के लिए अति आवश्यक होता है।  फिल्म जस्सू यह एक उत्तरप्रदेश के सुलतानपुर जनपद की सत्य घटना पर आधारित कहानी है, जिसको शॉर्ट फ़िल्म में रूपांतरित किया गया है, यह प्रोजेक्ट “एस स्क्वायर” बैनर के माध्यम से निर्मित किया गया है, जिसकी निर्माता “बोईशाली सिन्हा” हैं, इसकी पटकथा के “लेखक एवं निर्देशक” “प्रशान्त सिंह” हैं, इसका छायांकन किया है “तुषार खरगाओनकर” ने, कहानी अत्यंत ही भावुक होने के साथ साथ मानवता के कई बिंदुओं को दर्शाती है, कहानी में एक मानसिक विक्षिप्त बच्चा जो कि सड़क दुर्घटना में घायल हो जाता है, जिसके बचने कि संभावनाए काफ़ी कम होती है, पर एक एनजीओ के कार्यकर्ता इस बच्चे कि निःस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं, अंततः बच्चा स्वस्थ हो जाता है, और साथ ही साथ एक बेहतरीन भावुक कर देने वाला रिश्ता निर्मित होता है, जो कि मानवता के लिए एक बहुत ही बड़ा मापदंड स्थापित करता है। 

इस कहानी के रूपांतरण के लिए बोईशाली ने दिल्ली, और ग्रेटर नोएडा के कलेकारों से संपर्क किया, सभी चयनित पात्रों ने अपने अपने किरदारों को बखूबी निभाया, और कहानी को अच्छा बनाने में सहयोग किया कहानी १९९० के दशक की है जिसकी कि शूटिंग पृष्ठभूमि थी विलासपुर और ग्रेटर नोएडा, जिसमें हमने १९९० के दशक का वातावरण दिखाया, प्रोडक्शन सम्भाल रही “नोरीन” ने सभी सदस्यों का काफ़ी सहयोग किया जिससे एक पारिवारिक माहौल जैसा कार्य समझकर सबने अपना अपना काम किया और प्रोजेक्ट को एक अच्छी दिशा प्रदान की।



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